देहरादून | उत्तराखंड में मतदान की प्रक्रिया समाप्त हो गयी है और परिणामों को लेकर अटकलों के दौर शुरू हो गए हैं | अधिकांश राजनैतिक जानकारों के अनुशार, उम्मीद के विपरीत कॉंग्रेस का प्रदर्शन 2017 से बेहतर होगा, लेकिन अंतत्वोगोतवा देवभूमि के सिंहासन पर भगवाधारी ही विराजमान होंगें | अधिक स्पष्ट शब्दों में कहें तो बेहद करीबी मुक़ाबले में भाजपा बहुमत के पार जाती नज़र आ रही है |
मतदाताओं का मत ईवीएम में कैद होने के बाद अभी तक जो सूचनाएँ छन छन कर आ रही हैं उसके अनुशार 3-3 सीएम चेहरे सामने आने के वावजूद एक मर्तबा फिर विश्व की इस सबसे बड़ी पार्टी के कार्यकर्ताओं पर जनता का विश्वास बना हुआ है | हालांकि 2017 के रिकॉर्ड 56 सीटों पर विजय के आंकड़े से इस बार पार्टी को लगभग डेढ़ दर्जन सीटों का नुकसान होता दिखाई दे रहा है | वावजूद इसके भाजपा बहुमत के जादुई आंकड़े को आसानी से पार कर कमफर्ट मेजॉरिटी हासिल कर रही है | अनुमान लगाया जा रहा है कि पार्टी की गढ़वाल मण्डल के पर्वतीय जनपदों व देहरादून में बढ़त बरकरार है वहीं हरिद्धार में विपक्षी पार्टियों के साथ मुक़ाबला जबरदस्त है | वहीं कुमायूं मण्डल की 29 सीटों में वह कॉंग्रेस के मुक़ाबले अधिक नुकसान में है |
अब यदि बात कॉंग्रेस की करें तो लगातार चर्चा में बने रहने के वावजूद न हरीश रावत अपनी पार्टी के नेताओं को खुद से कनेक्ट कर पाये और न ही उनकी पार्टी जनता से कनेक्ट होने में पूरी तरह सफल हो पायी | दिल्ली से आए उनके धुरंधर प्रवक्ताओं और राहुल प्रियंका के दौरों के वावजूद भी कुमायूं के अतिरिक्त पार्टी राज्य में अन्य कहीं भी बढ़त लेती नहीं नज़र आ रही है | बेशक वहाँ भी पूर्व सीएम हरीश रावत और यशपाल आर्य पार्टी के अन्य उम्मीदवारों को फायदा दिलाने के वावजूद स्वयं बेहद कठिन मुक़ाबले में घिरे नज़र आ रहे हैं |
जहां तक दोनों पार्टियों घोषणापत्रों की तुलना करें तो कॉंग्रेस का घोषणा पत्र वादों का पिटारा प्रतीत हुआ वहीं भाजपा का दृष्टि पत्र स्पष्ट न होने के वावजूद अधिक नीतिगत व नियोजित दिखाई दिया | जहां तक सवाल है जनता का तो कॉंग्रेस को अपनी खोई हुई विश्वसनीयता का नुकसान झेलना पड़ा | रहा सवाल चुनाव प्रचार का तो राहुल प्रियंका को छोड़ दें तो कॉंग्रेस के केंद्र से आए अधिकांश नेता होटलों में पत्रकार वार्ता या मैदानी क्षेत्र में प्रचार तक ही सीमित रहे | वहीं भाजपा के स्टार प्रचारक हमेशा की तरह पहाड़ मैदान एक करते हुए रिकॉर्ड फिजिकल व वर्चुअल जनसभाओं व अन्य माध्यमों से जनता के मध्य रहे | जिसका उन्हे लाभ भी मिला और पार्टी सत्ता विरोधी रुझान को साधने में कामयाब रही | यही वजह रही कि 2017 चुनाव के मुक़ाबले मतदान का प्रतिशत न के बराबर कम हुआ |
फिलहाल इस बार के चुनाव परिणाम लोकतन्त्र की खूबसूरती को बयां करने वाला होगा | जो एक तरफ कॉंग्रेस को 2017 के 11 सीटों के गर्त से निकलते हुए राजनैतिक विश्वसनीयता पाने के लिए प्रेरणा देने वाला होगा | वहीं दूसरी और भाजपा के लिए भी पीएम मोदी के नाम व संघटन के काम से आगे आम जनता की बढ़ती अपेक्षाओं को पूर्ण करने की प्रेरणा देने वाला होगा |