हाल में करवा चौथ की धूम आप सभी ने बाज़ार से लेकर घरों तक देखी होगी । लगभग इस फिल्मी त्यौहार की चकाचौंध में हम संतान की दीर्घायु एवं सुखी जीवन के लिए अहोई अष्टमी व्रत की सनतनी परम्परा को भूलते जा रहे हैं । हम यहां प्रयास करते हैं पौराणिक महत्व रखने वाले इस संस्कार में क्या होता है खास ?
सबसे पहले बता देँ कि आज यानि 28 अक्तूबर को अहोई अष्टमी का व्रत रखा जाएगा। यह व्रत करवा चौथ के चार दिन बाद और दीपावली से आठ दिन पूर्व खखा जाता है। इस बार अहोई अष्टमी पर तीन विशेष योगों के बीच माताएं उपवास रखेंगी। इसमें सर्वार्थ सिद्धि योग, रवि योग और गुरु पुष्य योग एक साथ बन रहे हैं।
इन योगों में पुष्य नक्षत्र को सभी नक्षत्रों का सम्राट कहा जाता है। बृहस्पतिवार को गुरु पुष्य नक्षत्र योग होने से काफी लाभ मिलता है। ऐसे में इस बार अहोई व्रत का फल माताओं को कई गुना ज्यादा मिलेगा।कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को संतान के सुखी और समृद्धि जीवन के लिए अहोई अष्टमी को व्रत रखा जाता है। 28 अक्तूबर को शाम 5:39 से शाम 6:56 बजे तक अहोई अष्टमी की पूजा का शुभ मुहूर्त है।
अहोई अष्टमी के दिन अहोई माता की पूजा का मुहूर्त शाम को 01 घंटे 17 मिनट का है। इस दिन महिलाएं निर्जला व्रत कर अहोई माता की विधि-विधान से पूजा-अर्चना करती हैं। इस व्रत में शाम को तारों को अर्घ्य दिया जाता है।इसके बाद ही व्रत पूरा होता है। तारे निकलने के बाद अहोई माता की पूजा की जाती है। इस व्रत में कथा सुनते समय हाथों में सात प्रकार के अनाज होने चाहिए और पूजा के बाद यह अनाज गाय को खिलाया जाता है।इस व्रत में मुख्य रूप से मां पार्वती की पूजा की जाती है। मां पार्वती के साथ ही मां स्याऊ की भी पूजा करनी चाहिए। इस दिन व्रत रखते वाली महिलाओं को कुछ बातों का विशेष ध्यान देने की जरूरत होती है। व्रत के दौरान माताएं जमीन में खुदाई न करें और सब्जी या फल आदि न काटें। इससे संतान को कष्ट होता है। इस दिन भगवान शिव एवं माता पार्वती को दूध, चावल का भोग लगाकर चांदी की नौ मूर्तियों को माला में पिरोकर धारण करना चाहिए। अहोई अष्टमी का व्रत जीवन में होने वाली अनहोनी और घटनाओं से रक्षा करता है। साथ ही संतान प्राप्ति में भी यह व्रत लाभकारी है ।अहोई माता की आकृति दीवार पर गेरू के घोल से बनाएं। सूर्यास्त होते ही अहोई का व्रत पूजन करें। सामग्री में एक चांदी या सफेद धातु की अहोई, चांदी की मोती की माला, जल से भरा हुआ कलश, दूध, हलवा, गन्ना, सिघाड़े व पुष्प तथा दीप के साथ पूजा करें। कथा सुनते समय हाथ में गेहूं के सात दाने व दक्षिणा रखें। वहीं शाम को तारों को अर्घ्य देकर व्रत संपन्न करें।
फिलहाल इस वर्ष सम्भव हुआ हो या नही, उम्मीद करते हैं भविष्य में हम सभी बाजार या भेडचाल का हिस्सा न बनकर अहोई अष्टमी की सनातनी परंपरा का अनुशरण करेंगें ।