भारतीय अध्यात्म के सार्वभौमिकता विचारों से ही अंतरराष्ट्रीय संबंधों को ठीक किया जा सकता हैं। यह निष्कर्ष था अध्यात्म आधारित ज्ञान से सम्बंधित गोष्ठी का । गणित विभाग राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय कोटद्वार एवं देवभूमि विचार मंच द्वारा “भारतीय अध्यात्म विज्ञान की वर्तमान में प्रासंगिकता” विषय पर राष्ट्रीय संगोष्ठी आयोजित की गयी ।
इस अवसर पर विशिष्ट अतिथि के रूप अटल बिहारी वाजपेई विश्वविद्यालय बिलासपुर, छत्तीसगढ़ के कुलपति प्रो. अरुण दिवाकर नाथ बाजपेई ने अपने सम्बोधन मे कहा कि निष्काम भाव से जुड़कर ही उपभोग करें। धर्म अर्थ काम मोक्ष पुरुषार्थ के लक्षण हैं। आध्यात्मिक विज्ञान का साक्षात्कार करें। त्याग के साथ उपयोग करें। परिवार समाज राष्ट्र विश्व के लिए त्याग करिए। मुख्य वक्ता महेश योगी वैदिक विश्वविद्यालय भोपाल के प्रो. निलिम्प त्रिपाठी ने कहा कि मुक्ति का मार्ग देने वाले भी ऐषणाओं से मुक्त नहीं हैं। लोकेषणा, वित्तेषणा, पुत्रैषणा से मुक्त होना ही जीवन मंत्र है। मनुष्य अर्पण, तर्पण, समर्पण का भाव रखकर ही ऋषि ऋण से उर्ण हो सकते हैं। जीवन के प्रति संशय नहीं रखना है।
इस अवसर पर विशिष्ट वक्ता हरिद्वार रुड़की विकास प्राधिकरण के सचिव डॉ ललित नारायण मिश्र ने शरीर के पांच कोषों का वर्णन एवं विविध प्रयोगों के वर्णन करते हुए कहा की विचारहीन से निर्विचार होना ही अध्यात्म है। मानसिक पूजन श्रेष्ठ है। कार्यक्रम की अध्यक्षता महाविद्यालय की प्राचार्या डॉ जानकी पंवार ने किया। राष्ट्रीय संगोष्ठी का संचालन संयोजक डॉ तृप्ति दीक्षित असिस्टेंट प्रोफेसर गणित एवं धन्यवाद ज्ञापन देवभूमि विचार मंच की प्रान्त संयोजिका डॉक्टर अंजली वर्मा ने किया। जिसमें प्रमुख रूप से डॉ अरुण कुमार चतुर्वेदी,डॉक्टर कंचन लता सिन्हा, प्रो वी के सारस्वत, डॉ सुषमा भट्ट, रवि जोशी, डॉ संजय शर्मा, डॉ पारुल दीक्षित, डॉ मोनिका दीक्षित, डॉ प्रवीण तिवारी, डॉ पीयूष दीक्षित, डॉ राजेश श्रीवास्तव सहित अनेक राज्यों से शिक्षाविद एवं देवभुमी विचार मंच के कार्यकर्ता वर्चुअल जुड़े रहे।