पौड़ी। एक बार फिर स्वतंत्रता सेनानी व उत्तराखंड में सामाजिक चेतना के अग्रदूत जयानन्द जी के योगदान को याद करने का मौका मिला । मौका था पौडी में होने वाला उनकी स्मृति मेले का, जिसमें शामिल हुए पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज । इस मौके पर उन्होने भारती द्वारा चलाये डोला-पालकी आन्दोलन और अजादी की लडाई में दिये योगदान को याद करते हुए इस प्रसिद्ध मेले को राजकीय मेला घोषित किया ।
विकासखण्ड बीरोंखाल स्थित पंचपुरी में स्वतंत्रता संग्राम सेनानी जयानन्द भारती की 141 वीं जयंती पर आयोजित समारोह में बोलते हुए सतपाल महाराज ने कहा कि स्वतंत्रता संग्राम सेनानी जयानन्द भारती सामाजिक चेतना के सजग प्रहरी बताया । महाराज ने कहा कि उनके व्यक्तित्व और कृतित्व पर एक फिल्म का निर्माण भी किया जाएगा साथ ही आगामी वर्षों में इस मेले को मूर्त रूप में आयोजित किया जाएगा ।इस अवसर पर विश्व बन्धु भास्कर द्वारा सम्पादित स्व. शांति प्रकाश प्रेम प्रभाकर की अप्रकाशित पुस्तक का भी श्री महाराज जी द्वारा विमोचन किया गया।
आओ याद करें जयानन्द भारती के अतुलनीय योगदान को
17 अक्टूबर 1881 को पौडी में जन्में जयानन्द भारती स्वतंत्रता सेनानी एवं देवभूमि में सामाजिक चेतना के अग्रदूत थे। उनके द्वारा चलाये डोला-पालकी आन्दोलन, जिसका उद्देश्य शिल्पकारों के दूल्हे-दुल्हनों को डोला-पालकी में बैठने के अधिकार बहाल कराना था । लगभग 20 वर्षों तक चले आन्दोलन को समाधान मिला इलाहाबाद उच्च न्यायालय का शिल्पकारों के पक्ष में दिया हुआ आदेश। स्वतन्त्रता संग्राम में भी भारती जी के योगदान को भुलाया नहीं जा सकता है। 28 अगस्त 1930 को इन्होंने राजकीय विद्यालय जयहरिखाल की इमारत पर तिरंगा झंडा फहराकर ब्रिटिश शासन के विरोध में भाषण देकर छात्रों को स्वतन्त्रता आन्दोलन के लिए प्रेरित किया। गवर्नर मैलकम हेली के पौडी दौरे के दौरान को काला झंडा दिखाने की घटना ने तो उन्हे इतिहास के पन्नों में महत्वपूर्ण स्थान दिलाया । इस दौरान भारती जी ने गवर्नर के सामने जाकर काला ध्वज लहराया व ‘वन्दे मातरम’ का घोष किया। ‘गवर्नर गो बैक’ के नारे लगाते हुए उन्हें पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया व इसके लिए उन्हें एक वर्ष के कठोर कारावास की सजा हुई। 9 सितम्बर 1952 को उनका देहावसान हुआ ।
अमूमन इतिहास को एक खास चश्में पहनकर लिखने की प्रवृति ने अनेकों देशभक्तों और समाज सुधरकों के योगदान का स्पष्ट उल्लेख नही किया । जयानन्द भारती के साथ कुछ ऐसा ही हुआ तभी उत्तराखंड में किये इस अम्बेडकरी प्रयासों को उचित पहचान नही मिली। उम्मीद है सरकार के ऐसे ही प्रयासों से न केवल प्रदेश की भावी पीढी बल्कि अन्य देशवासी भी परिचित होंगे।