लगता है बॉलीवुड का वह शर्मनाक दौर चला गया जब वीरांगना रानी पद्मावती को अलाउद्दीन खिलजी के सपनों के आधार पर फिल्माने की साजिश हुई या माचिस, बादल जैसी अनेकों फिल्मों में आतंकवाद को पीडित दर्शाने की कोशिश हुई । क्यूंकि द कश्मीर फाइल्स के बाद अब राजनीति की तरह फिल्मों में भी राष्ट्रवादी ट्रैंड शूरू हो गया है । इसी क्रम में ISIS की साजिश के तहत 10 साल में 32 हजार लड़कियों के गायब होने और जबर्दस्ती धर्म परिवर्तन द केरल स्टोरी नाम से फिल्म बनने जा रही है ।
सुदीप्तो सेन के निर्देशन में बनने वाली फिल्म का मंगलवार को अनाउंसमेंट किया गया है। इस फिल्म में केरल में विगत एक दशक में ह्यूमन ट्रैफिकिंग, ISIS द्वारा लड़कियों को उठाना, उनसे अपने लड़ाकों की शादी कराना, धर्म परिवर्तन जैसे मुद्दे को उठाया जायेगा।
फिल्म मेकर्स की तरफ से जारी एक शॉर्ट टीजर में केरल से हो रही हजारों लड़कियों की तस्करी और अवैध व्यापार के बारे में बताया है। इसमें दर्शाया गया है कि एक सोची समझी रणनीति के तहत ही केरल को इस्लामिक राज्य में बदलने के लिए एक अभियान के रुप मे 32 हजार से अधिक महिलाओं का अपहरण हुआ है। फिल्म निर्माताओं का दावा है कि 4 साल के लंबे रिसर्च के बाद ही हम इस विषय को उठा रहे हैं ।
फिल्म प्रोड्यूसर विपुल अमृतलाल शाह के अनुशार , “यह कहानी एक ह्यूमन ट्रेजडी है, जो आपको अंदर तक झकझोर देगी। जब सुदीप्तो ने आकर मुझे 3-4 साल से ज्यादा के अपने रिसर्च के साथ इसे सुनाया, तो मैं पहली बार में रो पड़ा। उसी दिन मैंने इस फिल्म को बनाने का फैसला किया। मुझे खुशी है कि अब हम फिल्म के साथ आगे बढ़ रहे हैं और हम घटनाओं की एक बहुत ही वास्तविक, निष्पक्ष और सच्ची कहानी बनाने की उम्मीद करते हैं।”
फिल्म के लेखक व निर्देशक सुदीप्तो सेन ने दावा किया कि एक जांच के अनुसार 2009 से केरल और मैंगलोर की लगभग 32,000 लड़कियों को हिंदू और ईसाई समुदायों से इस्लाम में परिवर्तित किया गया है और उनमें से ज्यादातर सीरिया, अफगानिस्तान और अन्य आईएसआईएस और हक्कानी प्रभावशाली क्षेत्र में पहुंचाई गई हैं। अपने रिसर्च के दौरान, हमने भागी हुई लड़कियों की मांओं के आंसू देखे हैं। हमने उनमें से कुछ को अफगानिस्तान और सीरिया की जेलों में पाया। वहीं ज्यादातर लड़कियों की शादी ISIS के खूंखार आतंकियों से हुई थी और उनके बच्चे भी हैं। फिल्म के माध्यम से हमारी कोशिश है कि भारतीय माताओं के दुख और बहिनों की पीड़ा को जनता की अदालत के समक्ष लाया जाये ।
फिलहाल उम्मीद की जा सकती है कि बड़े पर्दे के माध्यम से न केवल पठान व खान को वफादार दोस्त और इमानदार पुलिस अफसर साबित करने की परंपरा दफन होगी साथ संतों को तस्कर व पुजारियों को ढोंगी दिखाने की कोशिशें बन्द होगी । क्युंकि सम्प्रदायिक सदभाव सच छिपाने से नही बल्कि उसे स्वीकार कर कमियाँ दूर करने से बढ़ेगा ।