ऑनलाइन सुविधा के बढ़ते चलन असर अब धार्मिक प्रपराओं पर पढ़ने लगा है | ताजा विवाद बना है उत्तराखंड संस्कृत अकादमी का घर बैठे अपने दिवंगत परिजनों की अस्थि विसर्जन की ऑनलाइन योजना | चूंकि इस योजना का पीड़ित परिवारों से भी सबसे अधिक असर यदि किसी पर होना था तो वह है हरिद्धार का तीर्थ पुरोहित और पंडा समाज | लिहाजा आंदोलन से लेकर सीएम दरबार तक सभी जगह विरोध दर्ज़ कराया जा रहा है |
यूं तो कोरोना काल से पहले से ही ऑनलाइन प्रसाद, ऑनलाइन पूजा और मंदिर दर्शन आदि तमाम आधुनिक धार्मिक सेवाएँ प्रचलन में आ गयी थी | लेकिन जानलेवा कोविड की बदली परिस्थितियों मद्द्नेनजर इन सुविधाओं का `उपयोग बहुत बढ़ गया है | इसी कड़ी में एक कदम आगे बढ़ते हुए अंतिम संस्कार परंपरा के अंतिम कदम यानि अस्थि विसर्जन प्रक्रिया को भी ऑनलाइन करने की योजना बनाई है उत्तराखंड संस्कृत अकादमी ने | जिसके तहत पीड़ित परिवार घर बैठे ही दिवंगत की अस्थियों का विसर्जन करवा सकता है | इसके लिए बस उनको अकादमी के पते पर आस्तियां भेजनी होगी जिसे वह संबन्धित परिवार के पुरोहित से संपर्क कर ऑनलाइन प्रसारण कर अस्थि विसर्जन को सम्पन्न कराएंगे |
फिलहाल इस मुक्ति योजना को लेकर जबर्दस्त विवाद शुरू हो गया है | एक-एक कर कई धार्मिक संस्थाएं इसके विरोध में खड़ी हो गयी हैं | योजना के विरोध में गंगा सभा और तीर्थ पुरोहित समाज ने मुखर विरोध पदर्शनों के बाद अब गेंद अब धामी सरकार के पाले में डाल दी है | उनके प्रतिनिधिमंडल ने मुख्यमंत्री से मुलाक़ात कर संस्कृत अकादमी की मुक्ति योजना को तत्काल रद्द करने की मांग की है । पहले से ही कोरोना के चलते घाटे में चल रहा हरिद्धार का व्यापारी वर्ग में भी इसको लेकर नाराजगी है | वहीं दूसरी और संस्कृत अकादमी अभी वेट एंड वाच की स्थिति में क्यूंकि इस संबंध में निर्णय सरकार को ही लेना है ।
देवस्थानम बोर्ड विवाद के चलते पहले से ही तीर्थ पुरोहित और पंडा समाज की नाराजगी झेल रही भाजपा सरकार के यह नया विवाद चिंता बढ़ाने वाला है | सूत्रों के अनुशार पर संघटन और पार्टी विधायकों का एक बड़ा तबका इस योजना के सख्त खिलाफ है | लिहाजा सरकार तीर्थ पुरोहित समाज और व्यापारियों की नाराजगी किसी कीमत पर मोल नहीं लेना चाहती है | ऐसे इस योजना का रद्द होना या ठंडे बस्ते में जाना तय है |