हाल ही में आरएसएस की तालिबान से तुलना कर तालिबान को महिमामंडित करने वाले जावेद अख्तर अब अपनी सफाई में हिंदुओं की शान में कसीदे पढ़ रहे हैं | अब ये शायद भाजपा, हिंदुवादी संघटनों के पुरजोर विरोध का डर हो या तमाम राष्ट्रवादी विचारकों और बुद्धिजीवियों की आलोचना का असर, फिलहाल तो बॉलीवुड के ये सुप्रसिद्ध लेखक जमीन पर तो आए हुए हैं | यहाँ हम आप पर छोड़ देते हैं कि आप जावेद अख्तर की राय से इत्तेफाक रखते है या नहीं | फिलहाल आपकी मदद के लिए यहाँ हम जावेद अख्तर के पहले और अब के, दोनों बयान आपके सामने रखते हैं निर्णय करने के लिए |
जावेद का पहला बयान
3 सितंबर को एक निजी चैनल को इंटरव्यू में जावेद अख्तर ने तालिबान की तरफदारी करने की कोशिश में आरएसएस, बजरंग दल आदि हिन्दू संघटनों की कार्यप्रणाली को हिंदुस्तान का तालिबान संस्कारण बताया था | अपने इस विवादित इंटरव्यू में उन्होने जिक्र किया था कि पूर्व सर संघचालक एम.एस. गोलवलकर अल्पसंख्यकों से निपटने के नाजी तरीकों की तारीफ करते थे ।
अख्तर का आज का बयान
अपने इस नए बयान में जावेद अख्तर ने कहा कि मुझ पर तालिबान को महिमामंडित करने का आरोप सरासर बेबुनियाद है । मुझ पर हिंदुओं और हिंदू-धर्म की अवमानना करने का अभियोग भी लगाए गए हैं | लेकिन हकीकत यह है कि में मानता हूँ, पूरी दुनिया में, “हिंदू जनसमुदाय सबसे सज्जन और सहिष्णु बहुसंख्यक समाज है। में बार-बार दोहराता हूँ कि हिन्दुस्तान कभी अफगानिस्तान जैसा नहीं बन सकता, क्योंकि भारतीय लोग स्वभाव से ही अतिवादी नहीं हैं और मध्यमार्ग और उदारता हमारी नस-नस में समाई है । हाँ इतना अवश्य है, में संघ और उसके सहायक संगठनों के प्रति आशंकित रहता हूँ । मैं हर उस विचारधारा की निंदा करता हूं जो लोगों को धर्म-जाति-पंथ के आधार पर बांटती हो |
फिलहाल यहाँ हमने जावेद अख्तर की दोनों पहलुओं को आपके सामने प्रस्तुत किया है अपनी राय बनाने के लिए | लेकिन जहां तक हमारी राय का सवाल है तो हमे विश्वास है कि उनके निजी विचारों का एक तीसरा पहलू भी है जिसे वह शायद ही सार्वजनिक तौर पर स्वीकार करें | वह पहलू है मोदी विरोध और कम्युनिस्ट विचारधारा, जिसके चलते उन्हे आलोचना और घृणा के बीच की खाई पार करने का एहसास तक नहीं होता |