उत्तराखंड में विधानसभा चुनाव सर पर है और हरीश रावत की राजनीति, पार्टी आलाकमान के गले नहीं उतर रही है | वहीं सामूहिक नेतृत्व में चुनाव लड़ने का फरमान भी हरदा को न निगलते बन रहा है न उगलते बन रहा है | शायद यही वजह है कि पहले तो उन्होने कैप्टन की 2017 पंजाब चुनाव वाली रणनीति की तर्ज पर स्वयं को अकेले ही भाजपा से लड़ने में सक्षम बताकर पार्टी नेत्रत्व को चेताया| वहीं अब अपने समर्थकों से “सारा उत्तराखंड हरदा के संग” कैम्पेन लॉंच करवाकर केंद्रीय रणनीतिकारों के सामने बागी इरादे जाहिर कर दिये हैं | वहीं दूसरी और उनकी नजरान्दजी देख कर तो लगने लगा है कि चुनाव परिणामों से पहले ही 10 जनपथ कोर टीम भी हरदा को हराने मे कोई कोर कसर नही छोड़ने वाली ।
आजकल राजनीति में रुचि रखने वालों में यह सवाल आम है कि चुनावी मैसम में भाजपा कार्यालय में रौनक पहले की तरह नियोजित सी नज़र आती है लेकिन कॉंग्रेस दफ्तर में मेला लगा हुआ है | इस पर जानकारों का जबाब स्पष्ट है कि भाजपा कैडर बेस और बेहतर संगठनिक ढांचे वाली पार्टी है लिहाजा वहाँ क्रमवार बैठकें होती हैं इसलिए अधिक भीड़ सिर्फ महत्वपूर्ण आयोजनों पर होती है | वहीं कॉंग्रेस में रणनीतिविहीन और अनियोजित ढंग से चलती है, ऐसे में किसी को अंदाज़ा नहीं होता कि आगे क्या होने वाला है इसलिए वहाँ चुनाव के दिनों में सुबह से ही उम्मीदवारों और समर्थकों की भीड़ जुट जाती है | बरहाल हम बात करना चाह रहे थे हरीश रावत और उनके समर्थकों के पार्टी थीम से अलग बयानों और गतिविधियों की, जिसमें उनकी केंद्रीय नेत्रत्व से नरजगी साफ नज़र आने लगी है |
हरीश रावत चुनाव संचालन समिति के प्रमुख हैं और प्रदेश की कमान भी उनके चहेते गणेश गोदियाल के हाथों में है फिर भी रावत पार्टी का मुख्यमंत्री पद का चेहरा बनने की जिद्द पकड़े हैं | हालांकि चीजें आईने की तरह साफ है कि जीतने की स्थिति में स्वयं को सीएम न बनाने को लेकर जितना विश्वास हरदा को अपने आलाकमान पर है उससे कई गुना अधिक विश्वास पार्टी नेत्रत्व को हरीश रावत के अगला कैप्टन अमरिंदर बनने पर है | यही वजह है कि हरीश रावत स्वयं को सीएम उम्मीदवार घोषित करवाकर चुनाव बाद के लिए कोई किन्तु परंतु नहीं छोड़ना चाहते है वहीं आलाकमान समूहिक नेत्रत्व की बात दोहराकर उनके विरोधियों को मजबूती देने में लगा हुआ है | और ये सब है तब, जब कहा जा सकता है कि अभी जूट न कपास जुलाहों में लठमलठा |
फिलहाल कॉंग्रेस आलाकमान की तो मंशा साफ है कि वह अपनी मजबूती के लिए राज्यों में कमजोर नेत्रत्व को पनपाने में स्वयं की मजबूती देख रही है | लेकिन हरदा क्यूँ अपनी ढपली अपना राग गा रहे हैं, समझाने की कोशिश करते हैं | उन्होने हाल में बयान दिया कि मोदी शाह व पूरी भाजपा का मुक़ाबला करने के लिए वह अकेले ही सक्षम हैं | इशारा साफ है कि 2017 के पंजाब चुनावों में कैप्टन अमरिंदर वाली रणनीति की तरह वह अकेले दम पर चुनाव जीतना चाहते हैं | साथ ही दिल्ली के नेताओं को स्पष्ट संकेत है कि उन्हे राहुल गांधी या किसी अन्य के करिश्मे पर तनिक भी भरोसा नहीं है | अब इससे एक कदम आगे बढ़कर उन्होने अपने समर्थकों से “सारा उत्तराखंड हरदा संग” कैम्पेन लॉंच करवाया | हालांकि उनके द्धारा बताया जा रहा है कि इस प्रोजेक्ट में लोगों की समस्याओं और उनके समाधान को लेकर कार्य किया जाएगा | लेकिन जानकारों का कहना है कि ऐसा करके वे अपने नेत्रत्व को जताना चाहते हैं कि उन्हे पार्टी का चेहरा बनाए अन्यथा वे स्वयं ही अघोषित तौर पर ऐसा करने में सक्षम हैं | उत्तराखंडियत_जिंदाबाद की थीम से संचालित इस कैंपेन में एक टोल फ्री नंबर -9120900600 व वेबसाइट http://hardakesang.in भी जारी की गयी । इस अभियान के जरिए रावत कैंप हाईकमान के आगे उनकी लोकप्रियता साबित करने की कोशिश में भी जुटा है|
फिलहाल हरीश रावत और पार्टी के दिल्ली दरबार के बीच जारी इस रस्साकस्सी के टिकट की घोषणा होते होते और तीर्व होने की संभावनायें लगायी जा रही हैं | लिहाजा पहले से ही चुनावी तैयारियों को लेकर भाजपा से पिछड़ी कॉंग्रेस को इसका बड़ा खामियाजा उठाना पड़ सकता है | रही बात हरदा की तो उनके हालिया तेवर और पार्टी आलाकमान की उनको लेकर के चलते जीतने की स्थिति में भी उनका दोबारा सीएम बनना नमुंकिन सा है |