इन दिनों उत्तराखंड की राजनीति में देवस्थानम बोर्ड विवाद एक बड़ा मुद्दा बना हुआ है । पीएम मोदी के केदारनाथ दौरे के दौरान इसकी चर्चा अपने पीक पर रही । बोर्ड के विरोध में लाग्ने वाले तमाम आरोपों से अलग इस विवाद के पीछे एक और अहम वजह है जिसकी कोई चर्चा नही करना चाहता है । और वह है इन मन्दिरों से जुड़े तीर्थ पुरोहितों को परंपरागत अमल दस्तारी व्यवस्थता के तहत मंदिर के चढ़ावे से मिलने वाली धनराशि | ये राशि इतनी अधिक होती है कि संबन्धित व्यक्ति को जीवन में एक बार भी मिल जाये तो भी सरलता से उसके परिवार का जीवनयापन हो सकता है | लेकिन शोर हो रहा है तो सिर्फ मन्दिरों के सरकारीकरण और हकहकुक छिनने का |
यूं तो उत्तराखंड में चार धामों समेत कुल 53 मंदिरों के रखरखाव के लिए सृजित देवस्थानम बोर्ड का विरोध इसके अस्तित्व में आने से पहले ही विरोध शुरू हो गया था | लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दौरे के पहले पूर्व सीएम त्रिवेन्द्र सिंह रावत को बाबा केदार के दर्शन से रोकने की घटना ने इस विरोध को निर्णायक मोड पर ला दिया है | हालात ऐसे बने कि पीएम के दौरे को देखते हुए सीएम धामी को स्थानीय तीर्थ पुरोहित समाज को 30 नवंबर तक बोर्ड पर निर्णय की डेड लाइन देनी पड़ी | फिलहाल विरोध के कारणों को जानने से पहले हम समझते हैं क्या है यह बोर्ड |
क्या है देवस्थानम बोर्ड ?
त्रिवेंद्र सिंह रावत के मुख्यमंत्री काल में चारों धाम यानी यमुनोत्री, गंगोत्री, बद्रीनाथ और केदारनाथ समेत राज्य के 53 मंदिरों के संचालन के लिए सरकारी बोर्ड बनाने का फैसला लिया गया । जनवरी 2020 में राज्यपाल से मंजूरी के बाद ये एक्ट के रूप में सूबे में प्रभावी हो गया जिसके तहत ही 15 जनवरी 2020 को ‘चार धाम देवस्थानम बोर्ड’ बनाया गया। एक्ट के अनुसार, बोर्ड में मुख्यमंत्री अध्यक्ष, धार्मिक मामलों के मंत्री उपाध्यक्ष के अलावा बोर्ड में कुल 29 सदस्य होते हैं। इनमें 7 वरिष्ठ IAS अधिकारी और 20 नामित सदस्य होंगे। जिसमें पुजारियों, वंशानुगत पुजारियों के तीन प्रतिनिधियों को बोर्ड में शामिल किया गया ।
अब डालते हैं नज़र बोर्ड विरोध के पीछे के महतावपूर्ण कारणों को ?
बोर्ड के विरोध को लेकर सबसे बड़ा तर्क दिया जा रहा है वह है मंदिर के प्रबंधन में सरकार का दखल बढ्ने का । हालांकि पूर्ववृति व्यवस्थता में मंदिर की आय और अन्य मदों से आने वाली धनराशि के दुरुपयोग के लगातार आरोप लगना आम हो गया था | फिलहाल सरकार की कोशिश जबाबदेही तय करने की है |
तीर्थ पुरोहितो और हकहकूकधारियों के हितों को नुकसान पहुंचाने वाला सबसे अहम नियम है इस एक्ट का, चार धाम देवस्थानम बोर्ड में ‘अमल दस्तूरी‘ की व्यवस्था खत्म किया जाना । यानी इस व्यवस्थता के तहत पुरातन काल से मंदिर की आय का एक तय हिस्सा मंदिर की व्यवस्था से जुड़े लोगों को दिया जाना अब बंद हो गया है । इन निर्णय ने विरोध करने वाले अधिकांश लोगों को जबरदस्त आर्थिक नुकसान पहुंचाया है | जानकारों के अनुशार इस व्यवस्थता के दायरे में आने वाले पुजारियों और तीर्थ पुरोहित वर्ग के संबन्धित सदस्यों को बमुश्किल जीवन में एक बार ही मंदिर को होने वाली आया का यह हिस्सा मिल पाता है | लेकिन यह धनराशि इतने लाखों में होती है कि उसका पूरा परिवार उम्र भर उससे जीवनयापन कर सकता है | लिहाजा बिना अधिक प्रयास के मात्र परंपरा के नाते मिलने वाली इतनी बड़ी रकम का यूं रुक जाना विरोध का सबसे बड़ा कारण है | लेकिन सभी जानते हैं कि नैतिकता के लबादे में इसे खुल कर स्वीकार करना कितना नमुंकिन सा है |
नयी व्यवस्थता के तहत चढ़ावे पर भी बोर्ड का नियंत्रण हो गया। एक और जहां पहले भी मंदिर में आए चढ़ावे की गिनती को लेकर घपले के गंभीर आरोप लगते रहे हैं | वहीं इस धनराशि के दुरुपयोग की खबरें भी सामान्य हो गयी थी | फिलहाल नए बोर्ड में इन पैसों का इस्तेमाल निर्माण कार्य जैसे-पार्क बनाना, स्कूल बनाना या अन्य तरह के कामों में लगाने का प्रावधान है।
हालांकि विरोध का यह सारा मसला हक हकूक छिनने के बजाय मंदिरों पर एकाधिकार छिनने का अधिक लगता है | अब चूंकि चुनाव सन्निकट है लिहाजा चाहे अनचाहे देवस्थानम बोर्ड पर पर भाजपा सरकार को इस मुद्दे पर किसी न किसी निष्कर्ष पर पहुँचना ही होगा | संभव है कि यह निर्णय कृषि सुधार क़ानूनों की तरह कुछ समय के लिए देव स्थानम बोर्ड को स्थगित किया जाये |