
देहरादून । उत्तराखंड के उत्तरकाशी में हुए दुखद हिमस्खलन हादसे से 10 पर्वतारोहियों के शव बरामद हो चुके हैं और अब तक 14 घायलों को बचाया गया है, जबकि 27 लोग अब भी लापता हैं। दरअसल ये सभी लोग नेहरू इंस्टीट्यूट ऑफ माउंटेनियरिंग के 41 पर्वतारोही द्रौपदी का डंडा-II पहाड़ पर चढ़ने की ट्रेनिंग ले रहे थे, जिसमें 34 ट्रेनी और 7 इंस्ट्रक्टर थे।
हिमस्खलन किसे कहते है ———
बर्फ या पत्थर के पहाड़ की ढलान से तेजी से नीचे गिरने को हिमस्खलन या एवलांच कहते हैं। हिमस्खलन के दौरान, बर्फ, चट्टान, मिट्टी और अन्य चीजें किसी पहाड़ से नीचे की ओर तेजी से फिसलती हैं। हिमस्खलन आमतौर पर तब शुरू होता है जब किसी पहाड़ की ढलान पर मौजूद बर्फ या पत्थर जैसी चीजें उसके आसपास से ढीली हो जाती हैं। इसके बाद ये तेजी से ढलान के नीचे मौजूद और चीजों को इकट्टा कर नीचे की और गिरने लगती हैं। चट्टानों या मिट्टी के स्खलन को भूस्खलन कहते हैं।
हिमस्खलन तीन तरह के होते हैं, जिसमें चट्टानी हिमस्खलन बड़े-बड़े चट्टानों के टुकड़े होते हैं । दूसरे हिमस्खलन में बर्फ पाउडर या बड़े-बड़े टुकड़ों के रूप में होती है। ये अक्सर ग्लेशियर या हिमनदी के आसपास होते हैं। तीसरा मलबे के हिमस्खलन में पत्थर और मिट्टी समेत कई तरह के मटेरियल होते हैं।
अब सवाल उठता है हिमस्खलन आखिर शुरू कैसे होता है? इसके शुरू होने के दो तरीके है, पहला कई बार पहाड़ों पर पहले से मौजूद बर्फ पर जब हिमपात की वजह से वजन बढ़ता है, तो बर्फ नीचे सरकने लगती है, जिससे हिमस्खलन होता है। दूसरा-गर्मियों में सूरज की रोशनी यानी गर्मी की वजह से बर्फ पिघलने से हिमस्खलन होता है। एक बड़े और पूरी तरह से विकसित हिमस्खलन का वजन 10 लाख टन या 1 अरब किलो तक हो सकता है। पहाड़ों से नीचे गिरने के दौरान इसकी स्पीड 120 किलोमीटर प्रति घंटे से 320 किलोमीटर प्रति घंटे से भी ज्यादा हो सकती है। सामान्यतः हिमस्खलन सर्दियों में दिसंबर से अप्रैल में होता है।