कश्मीर में आतंकी गोलियों से छलनी शिक्षकों के शरीर हमेशा हमेशा के लिए खामोश हो गए | पीड़ित परिवारों की चीत्कार से आसमान फटने को तैयार है लेकिन इन नरसंहारो पर लोकतन्त्र की हत्या का होहल्ला मचाने वाले राजनैतिक दलों के कानों में जूं तक नहीं रेंगी | चूंकि कश्मीर में चुनाव नहीं है यूपी की तरह, इसलिए सभी लखीमपुर की दौड़ में शामिल हैं आतंकवाद में जान गँवाने वाले शहीदों की शव यात्रा में नहीं | अब मरने वाले शिक्षक हों, व्यापारी हो या कुछ और, कोई फर्क नहीं पड़ता क्यूंकि हत्यारे आतंकियों से संबन्धित धर्म विशेष वोट बैंक के लालच ने सभी विपक्षी पार्टियों के जुबान पर ताला लगाया हुआ है | क्षेत्र विशेष की पार्टी सपा बसपा तो दूर, खुद को हाल में ही कश्मीरी पंडित होने की कसमें खाने वाले और राष्ट्रीय पार्टी का दावा करने वाले राहुल गांधी को भी साँप सूंघ गया है | राष्ट्रीय संप्रभुता को चोट पहुंचाते कश्मीरी आतंकवादियों पर प्रतिक्रियाविहीन विपक्ष के लिए देश में एक ही मुद्दा है किसान उत्पीड़न वह भी भाजपा शासित प्रदेश का होना चाहिए |
खैर यह सब दुखड़ा सुनाना इन तमाम राजनैतिक पार्टियों के लिए नक्कारखाने की तूती की तरह है | इसलिए आपका अधिक समय बर्बाद करने के बजाय हमारी कोशिश है आतंकवादियों के हाथों घाटी में सांप्रदायिक सोहार्द की अंतिम पहचान होने की कीमत चुकाने वाले इन परिवारों पर टूटे दर्द के पहाड़ का अहसास आप तक पहुंचाने की | गुरुवार को श्रीनगर में आतंकियों ने ईदगाह इलाके में स्कूल में घुसकर जिन दो शिक्षकों की हत्या की उनका कसूर सिर्फ और सिर्फ इतना था कि वह 90 के दशक में घाटी में हिंदुओं पर हुए कत्लेआम की बाद भी उन्हे वहाँ रहने की जुर्रत की थी | पाकिस्तान की खैरात पर पलने वाले इन हैवानों ने चुन चुन कर आई कार्ड पर नाम देखा और प्रिंसिपल सुपिंदर कौर और शिक्षक दीपक चांद को गोलियों से भून दिया । श्रीनगर के अलोचीबाग के रहने वाले यह दोनों गवर्नमेंट बॉयज हायर सेकेंडरी में शिक्षक थे। इससे पूर्व आतंकियों ने श्रीनगर के प्रसिद्ध फार्मासिस्ट और दवा कारोबारी माखनलाल बिंद्रू की हत्या कर दी थी ।
गौरतलब है कि पिछले 5 दिनों में दहशतगर्दों द्धारा निर्दोष नागरिकों की हत्या करने की यह 7वीं घटना है | वहीं इस साल अब तक पूरे कश्मीर में 25 आम लोग अपनी जान इन आतनवादी घटनाओं में गंवा चुके हैं । निसंदेह इसमे कोई शक नहीं कि कश्मीर घाटी में आतंकवाद की कमर टूट चुकी है और वह अपनी आखिरी कोशिश के तहत निहत्थे नागरिकों को निशाना बनाकर अपनी दहशत को बरकरार रखना चाहती है | इस समय कश्मीर में आतंकवाद 90 के दशक के उसी पुराने दौर में लौट गया है जब उनके हौसले इतने बुलंद नहीं थे कि बाद के दो दशकों की तरह सुरक्षा बालों पर खुल कर बड़े हमले कर सके | इसीलिए इस तरह के कायरना हमले और साजिश से वह अपनी आखरी कोशिश कर रहे हैं |
लेकिन सबसे हैरानी की बात है कि जब देश से आतंकवाद पैकअप होने की स्थिति में आकर 90 का इतिहास दोहरा रहा है तो भी आज का मुख्य विपक्ष और तब की सत्ताधारी पार्टियां, चाहे कॉंग्रेस हो या कोई और, कोई सबक लेने को तैयार नहीं हैं | दुर्भाग्यपूर्ण है कि तब भी वह कश्मीर घाटी में हिंदुओं पर हुए अत्याचार पर खामोश रही और आज भी इस मुद्दे पर उनके खेमों में मरघट सी खामोशी छायी हुई है | आज जब उनके पास घाटी में होने वाली इन हत्याओं पर मोदी सरकार से सवाल जबाब का मौका था | लेकिन एक बार फिर उनकी खामोशी उन पर सुविधावादी हिन्दू और छदम राष्ट्रवादी होने के आरोपों को चस्पा होने का मौका देती है |