देहरादून । आज जिस दिल्ली स्थित तीन मूर्ति भवन का नाम परिवर्तन को लेकर विपक्ष हो हल्ला कर रहे हैं उसको लेकर कांग्रेस की मंशा कभी सही नही रही । इतिहासकारों के मुताबिक 1964 में प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री को तीन मूर्ति आवास में शिफ्ट होने से रोका था। क्योंकि 9 अगस्त 1964 को केंद्रीय कैबिनेट ने फैसला लिया कि इस भवन में एक बार फिर से भारत के प्रधानमंत्री को रहना चाहिए। प्रसिद्ध इतिहासकार रामचंद्र गुहा, ‘इंडिया आफ्टर गांधी’ में लिखते हैं कि जब इंदिरा को खबर मिली कि प्रधानमंत्री कार्यालय उन्हें इस भवन को खाली करने का आदेश दे सकता है तो उन्होंने अपने समर्थकों के साथ मिलकर इसे राष्ट्रीय स्मारक बनाने का प्रस्ताव दे डाला। विभिन्न समाचार पत्रों के अनुशार, इंदिरा गांधी ने पीएम शास्त्री को एक चिट्ठी भी लिखी, जो इस प्रकार है ।
,”आदरणीय प्रधानमंत्री जी तीन मूर्ति भवन को आप मेरे पिताजी पंडित जवाहरलाल नेहरू का स्मारक बनाना चाहते हैं या खुद वहां रहना चाहते हैं, इस बात का फैसला यदि आप जल्दी करते तो बेहतर होगा। वैसे मैं हमेशा से यह मानती रही हूं कि तीन मूर्ति भवन रहने के लिहाज से बहुत बड़ा है, लेकिन पंडित नेहरू की बात अलग थी। उनसे मिलने वालों की तादाद बहुत बड़ी थी। हालांकि, अब स्थिति ऐसी नहीं रहेगी। आपसे मिलने वालों की कुछ खास तादाद नहीं होगी।”
इसके बाद शास्त्री जी ने विवाद न बड़े इसलिए तीन मूर्ति भवन को नेहरू म्यूजियम बना दिया था। मोदी सरकार ने अब इसी नेहरू मेमोरियल का नाम बदलकर प्रधानमंत्री म्यूजियम एंड लाइब्रेरी कर दिया है, जो देश का नेतृत्व करने वालों की गाथा दुनिया देखेगी।