इज़राइल ने अकेले दुनिया भर के 50 से अधिक मुस्लिम देशों की नाक में दम किया हुआ है | इस एकमात्र यहूदी राष्ट्र ने अपने जन्म से लेकर अब तक, सात दशकों में दर्जनों मर्तबा इन देशों को करारी शिकस्त दी है | जिसमें 67 की वो मशहूर जंग भी है जब इज़राइल ने आठ अरब देशों को मात्र 6 दिन में एक साथ युद्ध में हराया था | और यह सब संभव हुआ दुनिया भर से मिटते अपने वजूद को पुनः स्थापित करने के जुनून से, जिसने सबसे शांत कौम को न केवल पलटवार बल्कि पहले हमले की नीति पर अमल करने पर मजबूर किया है | जिस राष्ट्रवाद की विचारधारा आज भारत में अपने चरम पर है वो कहीं न कहीं इज़राइल से पूरी तरह प्रेरित है |
ये समझने के लिए कि दुनिया की सबसे सबसे सभ्य कौम सबसे लड़ाका कौम में कैसे तब्दील हो गयी तो सर्वप्रथम हमें विगत दो हज़ार वर्षों में यहूदियों पर अस्तित्व मिटाने की हद तक हुए नरसंहार को जानना होगा | अफसोस येरोशलम में पैदा यहूदी संस्थापक मोहम्मद इब्राहिम के उपदेशों से ही उपजे मुस्लिम और ईसाई धर्म को मानने वाले लोग यहूदियों को ही मिटाने में हजारों वर्षों तक लगे रहे | यही वजह रही कि यहूदी समाज जान बचाने की खातिर अरब से निकलकर यूरोप में फ़ेल गया | लेकिन प्रथम और द्वितीय विश्व युद्ध के बीच हिटलर द्वारा 60 लाख से भी अधिक यहूदियों के नरसंहार ने उन्हे अंतत अपने लिए अपनी उत्पत्ति भूमि इज़राइल को राष्ट्र के रूप में संगठित करने पर मजबूर किया | 1947 तक ब्रिटिश राज के अधीन फिलिस्तीन में येरोशलम के आस पास दुनियाभर से यहूदियों का आना शुरू हो गया था जो 30 फीसदी आबादी तक जा पहुंची थी | जाने से पहले अंग्रेजों ने हिंदुस्तान की तरह इसे भी दो हिस्सों यहूदियों के लिए इसराइल और मुस्लिमों के लिए अरब अब फिलिस्तीन के रूप में बाँट दिया था |
चूंकि समूचे अरब क्षेत्र में इज़राइल एकमात्र गैर इस्लामी देश था लिहाजा संघर्ष होना तो तय था | सयुंक्त राष्ट्र संघ की मंजूरी के बाद इजराइल का स्वतंत्र राष्ट्र होना अरब देशों को स्वीकार नहीं हुआ | तभी सिरिया, लीबिया तथा इराक ने इजराल पर हमला कर दिया और 1948 के अरब – इजराइल युद्ध की शुरुआत हुयी। सउदी अरब ने भी तब अपनी सेना भेजकर और मिस्त्र की सहायता से आक्रमण किया और यमन भी युद्ध में शामिल हुआ, लगभग एक वर्ष के बाद युद्ध विराम की घोषणा हुई और जोर्डन तथा इस्राइल के बीच असल सीमा रेखा सामने आई जिसमें कई अरब इलाके अब इज़राइल के कब्जे में थे | हजारों साल के अत्याचार और अरब देशों की मंशा को देखते हुए आत्मरक्षा के लिए इजरायल ने अपनी पूरी ताकत खुद को मजबूत करने में झोंक दी थी । अटैक इस द बेस्ट डिफेंस की नीति पर सर्वश्रेष्ठ अमल यदि किसी देश ने किया तो वह है इज़राइल |
1967 में अकेले 8 देशों को सिर्फ 6 दिन की जंग में धूल चटायी
युद्ध की शुरुआत कुछ इस कदर हुई 27 मई, 1967 को मिस्र के तत्कालीन राष्ट्रपति अब्दुल नासिर ने घोषणा की थी कि अब अरब के लोग इजरायल का विनाश करना चाहते हैं। जिसके तहत उन्होने जॉर्डन के साथ एक समझौता किया कि अगर इजरायल द्वारा हमले की स्थिति में दोनों एध एक दूसरे का साथ देंगे | जून में इजरायल-मिस्र सीमा पर युद्ध शुरू हो गया था और जल्द ही ये कई और अरब मुल्कों तक फैल गया। जून वार के नाम से प्रसिद्ध इस युद्ध में इजरायल के खिलाफ जॉर्डन, मिस्र, इराक, कुवैत, सीरिया, सऊदी अरब, सूडान और अल्जीरिया जैसे देश शामिल हो गए थे। इजरायल पर हमला करने के लिए इन देशों ने जॉर्डन में अपना आर्मी बेस बनाया था। ये देश इजरायल पर अटैक करते कि इससे पहले ही 5 जून को इजरायली एयरफोर्स ने इजिप्ट के तकरीबन 400 फाइटर जेट्स जमीन पर ही उड़ा दिए थे। इससे दुश्मन देश घबरा गए थे और इसके बाद जमीनी जंग सिर्फ 6 दिन में ही खत्म हो गई थी। इस युद्ध में इजरायल के करीब एक हजार सैनिक मारे गए, जबकि अरब देशों में मौत की संख्या ज्यादा थी। इस युद्ध में अकेले मिस्र के ही करीब 15 हजार सैनिक, जॉर्डन के 6 हजार और सीरिया के करीब एक हजार सैनिक मारे गए थे। बाद के संघर्षों में भी अरब देशों को हार का मुंह देखना पड़ा – पश्चिमी देशों के साथ और अस्तित्व के प्रश्न ने सभी लड़ाइयों में उसे अजय बना दिया | अरब देशों को न केवल जान माल की भारी हानि उठानी पड़ी साथ ही येरोशलम, गाजापट्टी और फिलिस्तीन का काफी बड़ा इलाका इज़राइल के कब्जे में आ गया |
आज भी इज़राइल की खुफिया ऐजेंसी मोसाद दुनिया की नंबर एक सुरक्षा संस्था है, उसके द्वारा विदेशी जमीन पर अपने देश के दुश्मनों के खिलाफ अंजाम दिये मिशन किसी भी सुरक्षा ऐजेंसी के लिए अचरज से कम नहीं है | यही वजह है कि इज़राइल की आक्रामक सुरक्षा नीति से सभी वाकिफ है, लिहाजा ईरान, टर्की, पाकिस्तान समेत तमाम मुस्लिम देश कितना ही हो हल्ला फिलिस्तीन और गाजापट्टी पर हो रहे इज़राइली हमले पर मचाये लेकिन किसी की हिम्मत नहीं हो सकती उससे टकराने की |