आज पीएम मोदी ने मन की बात कार्यक्रम में एक बार फिर देवभूमि उत्तराखंड के मन के तार उस समय छेड़ दिये, जब उन्होने पाणी राखों आंदोलन के सच्चिदानंद भारती का जिक्र किया | हम में कई विशेषकर युवा पीढ़ी इस नाम से भी अनजान होंगे | पर्यावरण सरंक्षण के इस पुरोधा ने एक दो नहीं बल्कि 30 हज़ार से अधिक चाल खालों (छोटे तालाब) को बनाकर गाड़-गधेरों को पुनर्जीवित करने का भागीरथी कार्य किया है |
आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मन की बात कार्यक्रम के दौरान जल और जंगल संरक्षण पर अपने विचार व्यक्त रखते हुए पौड़ी जिले के पर्यावरणविद् सच्चिदानंद भारती का जिक्र किया | तो हमे भी इस सेवानिवृत्त शिक्षक द्वारा जंगल संरक्षण के लिए किए गए कार्यों को एक बार फिर आपके सामने लाने का मौका मिला ।
जल और जंगल के संरक्षण के अभियान में सच्चिदानंद भारती ने अपने शिक्षक कार्यकाल के दौरान ही उफरेखाल से चोल खाल अभियान की शुरुआत की थी, जो बाद में “पाणी रखो” आंदोलन के नाम से प्रसिद्ध हुआ | मूलतः पौड़ी में बीरोंखाल ब्लाक के गाडखर्क गांव के मूल निवासी भारती ने वर्ष 1989 से ही छोटे-छोटे चाल खाल बनाने शुरू किए । उद्देश्य था जंगल के अंदर इन छोटे गड्डों में बरसात के पानी का संरक्षण | इस प्रकातिक तालाब के कई फायदे हैं, पहला जल सरंक्षण से भूमि के जल स्तर में सुधार होता है और दूसरा जंगली जानवरों को पीने के पानी की सुविधा होती है |
सच्चिदानंद भारती ने क्षेत्र में करीब 30 हजार से अधिक चाल-खाल बनाए और नाम दिया ‘जल तलैया’ । साथ ही आसपास पर बांज, बुरांस और उत्तीस के पेड़ों को लगाया । उनकी इस मेहनत का ही नतीजा है कि 10 साल बाद वहाँ का सूखा गदेरा सदानीर नदी में बदल गयी | आज ‘गाड गंगा’ के नाम से जाने जाने वाले इस गदेरे में वर्तमान में भी सालभर पानी चलता है । उनका स्पष्ट मानना है कि चाल-खाल के निर्माण से प्राकृतिक जल स्रोतों को पुर्नजीवित कर गंगा और अन्य तमाम सहायक नदियों के अस्तित्व को बचाया जा सकता है। जल संरक्षण और संवर्द्धन के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य के लिए भारती अनेकों पुरस्कारों से नवाजे गए है |